शुरू हुई बायो डी-कम्पोजर घोल बनाने की प्रक्रिया, केजरीवाल ने कहा- अब नहीं पड़ेगी पराली जलाने की जरूरत

नई दिल्ली: नजफ़गढ़ में बायो डी-कम्पोजर घोल बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। बायो डी-कम्पोजर घोल की मदद से पराली से आसानी से निजात पाई जा सकेगी और पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आज नजफ़गढ़ स्थित बायो डी-कम्पोजर घोल केंद्र में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मौजूदगी में घोल बनाने की प्रक्रिया को शुरू किया गया। इस दौरान मुख्यमंत्री ने बायो डी-कम्पोजर घोल की विशेषताओं का उल्लेख किया और बताया की किस तरह से बायो डी-कम्पोजर घोल की मदद से पराली को बिना जलाए खत्म किया जा सकता है।

अरविंद केजरीवाल ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि बायो डी-कम्पोजर घोल को दिल्ली सरकार ने पूसा इंस्टिट्यूट की मदद से बनाया है। केजरीवाल ने कहा कि पिछले साल हमें पराली से होने वाले वायु प्रदूषण से बचने के लिए पूसा इंस्टिट्यूट के संग मिलकर इसे बनाने की कोशिश की थी। किसान जब अपनी फसल को काट लेते है तो नीचे जो डंठल बचता है। उसे पराली कहा जाता है। उसे किसान आग लगा देता था। लेकिन बायो डी-कम्पोजर घोल को डालने से 15 से 20 दिनों के अंदर डंठल गल जाता है औ खाद बन जाता है। पराली को जलाने से मिट्टी के गुण कम हो जाते थे। लेकिन ये घोल गुणों को बनाए रखता है।

इस साल दिल्ली की लगभग 4000 एकड़ जमीन पर इसका छिड़काव किया जाएगा। ऐसा करने से किसानों को पराली को जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मुख्यमंत्री ने कहा दिल्ली सरकार किसानों की मदद कर रही है। ताकि उन्हें पराली जलाने की जरूरत न पड़े। इसी तरह से वो चाहते हैं कि पंजाब, यूपी हरियाण व अन्य सरकारें में किसानों की मदद करें उन्हें ये घोल बनाकर दें। केजरीवाल के कहा कि बायो डी-कम्पोजर घोल की मदद से पराली जलाने की समस्या से राहत मिल जाएगी।

गौरतलब है कि पराली को जलाने से वायु प्रदूषण हो जाता है। लेकिन बायो डी-कम्पोजर घोल की मदद से इस प्रदूषण को खत्म किया जा सकता है और हवा शुद्ध हो रहेगी।

 

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