आखिर क्या है राफेल फाइटर जेट डील और इस डील से जुड़े विवाद (Rafale Deal Controversy In Hindi)

जानिए क्या है राफेल फाइटर जेट डील और क्यों कांग्रेस इस डील को लेकर एनडीए पर उठा रही है सवाल (Rafale Deal In Hindi)

इन दिनों राफेल डील को लेकर एनडीए सरकार पर कांग्रेस पार्टी द्वारा कई सवाल दागे जा रहे हैं और इस डील को लेकर विपक्षी पार्टियां एनडीए सरकार को घेरने में और कई आरोप लगाने में लगी हुई है. यहां तक की मोदी सरकार पर और उन पर भ्रष्टाचार के इलज़ाम भी लगाए जा रहे हैं. वहीं आखिर ये डील क्या है और इस डील को लेकर क्यों कांग्रेस पार्टी मोदी सरकार पर इतने सवाल उठा रही हैं इसके बारे में हम जानकारी देने जा रहे हैं.

क्या है ये डील (Rafale Deal Kya Hai)

राफेल डील वायुसेना के लिए नए विमानों को खरीदने से जुड़ी हुई है और भारत सरकार द्वारा साल 2015 में फ्रांस देश के साथ राफेल डील करने की घोषणा की गई थी. इस घोषणा के मुताबिक भारत ने इस देश की दसॉल्ट कंपनी जो कि विमान बिल्डर और इंटीग्रेटर कंपनी है, उसके साथ 36 फ्रेंच निर्मित राफेल फाइटर जेट ऑफ-द-शेल्फ खरीदने की बात कही थी. इन विमानों को लेने के लिए भारत सरकार द्वारा 58 हजार करोड़ रुपए का सौदा हुआ था और इसी डील को लेकर कांग्रेस पार्टी बीजेपी पर कई इलज़ाम लगा रही हैं.

दरअसल इस डील को करने की पहल अटल बिहारी वाजपेयी की सराकर के दौरान की गई थी. लेकिन सरकार बदलने के कारण ये डील हो नहीं पाई थी और जब यूपीए की सरकार आई तो उन्होंने इस डील को आगे बढ़ाया मगर ये डील तब भी नहीं हो पाई.

साल 2012 में इन जहाजों को खरीदने के लिए तीन देशों की कंपनियां रेस में थीं जो कि अमेरिका, रुस और फ्रांस की थी. वहीं उस वक्त की सरकार यानी यूपीए द्वारा फ्रांस की कंपनी से 126 विमान लेना तय हुआ था. जिनमें से 18 ऑफ-द-शेल्फ शेल्फ विमान सीधे तौर पर दसॉल्ट से लेने थे और बचे हुए 108 विमान को भारत की दसॉल्ट (dassault) कंपनी की मदद से हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, बेंगलुरु द्वारा संकलित ( assembled) किए जाने थे. लेकिन उस वक्त ये डील हो नहीं सकी थी. वहीं मोदी ने केंद्रीय सरकार में आने के बाद इस डील को आगे बढ़ाया और साल 2015 में फ्रांस देश के राष्ट्रपित के साथ मिलकर इस डील को करने की घोषण की थी और साल 2016 में ये डील कर ली गई थी.

क्यों है कांग्रेस को इस डील पर आपत्ति  (Rafale Deal Controversy In Hindi)

कांग्रेस पार्टी का कहना है कि जब उनकी सरकार थी तो उनके द्वारा ये डील कम पैसों पर की गई थी. यूपीए सरकार को एक जहाज 600 करोड़ रुपए में दिए जा रहे थे जबकि इसी एक जहाज को एनडीए सरकार द्वारा 1600 करोड़ रुपए में खरीदा जा रहा है. वहीं मोदी सरकार ने 126 जहाजों की जगह 36 हवाई जहाज लेने का निर्णय लिया है.

आखिर बीजेपी द्वारा इन विमानों को अधिक पैसों में क्यों खरीदा जा रहा है (Rafale Deal Congress Vs Bjp In Hindi)

बीजेपी द्वारा अधिक पैसों में इन विमानों को खरीदे जाने वाले सवाल पर, बीजेपी ने अपना जवाब भी दिया है और बीजेपी का कहना है कि यूपीए सरकार के दौरान केवल इन विमानों को खरीदा जा रहा है जबकि एनडीए सरकार द्वारा  इस विमान के स्पेयर पार्ट्स, ट्रेनिंग सिम्युलेटर, मिसाइल सहित अन्य चीजें भी ली जा रही हैं. इतना ही नहीं इस डील के अतिरिक्त, फ्रांस भारत के सैन्य एयरोनॉटिक्स से संबंधित अनुसंधान कार्यक्रमों में 58 हजार करोड़ यूरो का 30 प्रतिशत और राफेल घटकों के स्थानीय उत्पादन में 20 प्रतिशत का निवेश करेगा. वहीं भारत में अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस लिमिटेड को फ्रेंच फर्म के भारतीय भागीदार होने के लिए चुना गया था, जिसपर कांग्रेस ने आपत्ति जताई है.

सुप्रीम कोर्ट से मिली हरी झंडी (Rafale Deal Deal Supreme Court Judgement )

इस डील का मसल सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच गया था और हाल ही में इस डील को सुप्रीम कोर्ट द्वारा हरी झंडी भी दे दी गई थी और कोर्ट ने कहा था कि वो इस डील से संतुष्ट है और इस डील का प्रोसेस का सही पालन किया गया है. हालांकि विपक्ष पार्टियों का कहना है कि कोर्ट द्वारा अभी तक इस डील को हरी झंडी नहीं दी गई है.

इस साल मिलेगा पहला विमान

साल 2016 में ये डील पक्की हो गई थी और साल 2019 में भारत को प्रथम रफेल मिलने जा रहा है जबकि बाकी बचे विमान कुछ सालों के अंदर आने वाले हैं. वहीं इस डील को लेकर राहुल ने मोदी को फेस टू फेस चर्चा करने की चुनौती भी दी है.

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